Sunday, January 9, 2011

*शिवमानसपूजा स्तोत्र *


by S. Chandrasekhar on Tuesday, December 14, 2010 at 12:14pm

*शिवमानसपूजा*

 

रत्ने कल्पित मानसं हिमजलै स्नानं च दिव्याम्बरं,

नानारत्न विभूषितम मृगमदा मोदान्कितं चन्दनं |

जातीचम्पक बिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा,

दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम ॥ १ ॥


:: हे दयानिधे ! हे पशुपते ! हे देव ! यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्नावलिविभूषित दिव्य वस्त्र, कस्तूरिकागन्धसमन्वित चन्दन, जूही, चम्पा और बिल्वपत्रसे रचित पुष्पाञ्जलि तथा धूप और दीप यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये॥ १ ॥


 

सौवर्णे नवरत्‍‌नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसम,

भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं,

ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥ २ ॥


:: मैंने नवीन रत्नखण्डोंसे खचित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन, कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक, कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल-- ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं; प्रभो ! कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये ॥ २ ॥


 

छत्रं चामरयोर्युगम व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं,

वीणाभेरीमृदंगका हलकला गीतं च नृत्यं तथा |

साष्टांगं प्रणति: स्तुतिर्बहुविधा ह्योतत्समस्तम मया,

संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ ३ ॥


:: छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण, वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य, गान और नृत्य, साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति -- ये सब मैं संकल्पसे ही आपको समर्पण करता हूँ; प्रभो ! मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये ॥ ३ ॥


  आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राण: शरीरगृहं,

पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्तिथि: |

संचार: पदयो प्रदक्षिणविधि स्तोत्राणि सर्वा गिरो,

यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम ॥  ४ ॥


:: हे शम्भो ! मेरी आत्मा तुम हो, बुद्धि पार्वतीजी हैं, प्राण आपके गण हैं, शरीर आपका मन्दिर है, सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है, निद्रा समाधि है, मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं; इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है ॥ ४ ॥


  करचरणकृतंवा कायजंकर्मजंवा श्रवणनयनजंवा मानसं वापराधम,

विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ ५ ॥


:: हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे, शरीरसे, कर्मसे, कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा मनसे भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो ! आप क्षमा कीजिये। आपकी जय हो, जय हो ॥ ५ ॥
 

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता  शिवमानसपूजा सम्पूर्णा ॥

॥ इस प्रकार श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचित शिवमानसपूजा सम्पूर्ण हुई  ॥

No comments:

Post a Comment