by S. Chandrasekhar on Tuesday, December 14, 2010 at 12:14pm
:: हे दयानिधे ! हे पशुपते ! हे देव ! यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्नावलिविभूषित दिव्य वस्त्र, कस्तूरिकागन्धसमन्वित चन्दन, जूही, चम्पा और बिल्वपत्रसे रचित पुष्पाञ्जलि तथा धूप और दीप यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये॥ १ ॥
*शिवमानसपूजा*
रत्ने कल्पित मानसं हिमजलै स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्न विभूषितम मृगमदा मोदान्कितं चन्दनं |
जातीचम्पक बिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम ॥ १ ॥
:: हे दयानिधे ! हे पशुपते ! हे देव ! यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्नावलिविभूषित दिव्य वस्त्र, कस्तूरिकागन्धसमन्वित चन्दन, जूही, चम्पा और बिल्वपत्रसे रचित पुष्पाञ्जलि तथा धूप और दीप यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये॥ १ ॥
सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसम,
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं,
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥ २ ॥
:: मैंने नवीन रत्नखण्डोंसे खचित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन, कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक, कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल-- ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं; प्रभो ! कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये ॥ २ ॥
छत्रं चामरयोर्युगम व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं,
वीणाभेरीमृदंगका हलकला गीतं च नृत्यं तथा |
साष्टांगं प्रणति: स्तुतिर्बहुविधा ह्योतत्समस्तम मया,
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ ३ ॥
:: छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण, वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य, गान और नृत्य, साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति -- ये सब मैं संकल्पसे ही आपको समर्पण करता हूँ; प्रभो ! मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये ॥ ३ ॥
आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राण: शरीरगृहं,
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्तिथि: |
संचार: पदयो प्रदक्षिणविधि स्तोत्राणि सर्वा गिरो,
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम ॥ ४ ॥
:: हे शम्भो ! मेरी आत्मा तुम हो, बुद्धि पार्वतीजी हैं, प्राण आपके गण हैं, शरीर आपका मन्दिर है, सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है, निद्रा समाधि है, मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं; इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है ॥ ४ ॥
करचरणकृतंवा कायजंकर्मजंवा श्रवणनयनजंवा मानसं वापराधम,
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ ५ ॥
:: हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे, शरीरसे, कर्मसे, कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा मनसे भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो ! आप क्षमा कीजिये। आपकी जय हो, जय हो ॥ ५ ॥
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा सम्पूर्णा ॥
॥ इस प्रकार श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचित शिवमानसपूजा सम्पूर्ण हुई ॥
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