Sunday, June 22, 2014

*श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम्*




*श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम्*


 

नमः श्रीविश्वनाथाय देववन्द्यपदाय ते ।
काशीशेशावतारो मे देवदेव ह्युपादिश ॥ १ ॥


हे देवदेव! आपने काशीमें शासन करनेके हेतु मङ्गलमूर्ति शिवके रुपमें अवतार लिया है। आप विश्वके नाथ हैं. देवता आपके चरणोंकी वन्दना करते हैं, आप मुझे उपदेश दें, आपको नमस्कार है ॥ १॥
 


मायाधीशं महात्मानं सर्वकारणकारणम् ।
वन्दे तं माधवं देवं यः काशीं चाधितिष्ठति ॥ २ ॥


जो मायाके अधीश्वर हैं, महान आत्मा हैं, सभी कारणोंके कारण हैं और जो काशीको सदा अपना अधिष्ठान बनाये हुए हैं, ऐसे उन भगवान माधवको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ २ ॥

 

वन्दे तं धर्मगोप्तारं सर्वगुह्यार्थवेदिनम् ।
गणदेवं ढुण्ढिराजं तं महान्तं सुविघ्नहम् ॥ ३ ॥


जो बड़े-से-बड़े विघ्नको अनायास ही बिना किसी प्रकारका श्रम किये ही नष्ट कर देते हैं, धर्मके रक्षक और सभी गुह्य (रहस्यपूर्ण) अर्थोंके वेत्ता हैं, ऐसे उन महान् ढुण्ढिराज गणपतिको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ३ ॥



भारं वोढुं स्वभक्तानां यो योगं प्राप्त उत्मम् ।
तं सढुण्ढिं दण्डपाणिं वन्दे गङ्गातटस्थितम् ॥ ४ ॥




जिन्होंने अपने भक्तोंका भार वहन करनेके लिये उत्तम योग प्राप्त किया है, ऐसे गङ्गातटपर स्थित ढुण्ढिराज सहित भगवान् दण्डपाणिको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ४ ॥



भैरवं दंष्ट्राकरालं भक्ताभयकरं भजे ।
दुष्टदण्डशूलशीर्षधरं वामाध्वचारिणम् ॥ ५ ॥



बड़ी-बड़ी दाढ़ोंवाले, भक्तोंको अभय कर देनेवाले, वाममार्गका आचरण करनेवाले, दुष्टोंको दण्ड देनेके लिये शूल तथा शीर्ष (कपाल) धारण करनेवाले भगवान् भैरवको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ५ ॥


श्रीकाशीं पापशमणीं दमनीं दुष्टचेतसः ।
स्वर्निःश्रेणिं चाविमुक्तपुरीं मर्त्यहितां भजे ॥ ६ ॥




श्रीकाशी पापोंका शमन तथा दुष्टचित्तवालोंका दमन करनेवाली और स्वर्गकी सीढ़ी है। यह भगवान् शिवके द्वारा कभी न परित्याग किये जानेवाली है, (इसलिये इसे 'अविमुक्तपुरी' कहा जाता है), मृत्युलोकके प्राणियोंके लिये यह हितकारिणी है। इस पुरीका मैं सेवन करता हूँ ॥ ६ ॥


नमामि चतुराराध्यां सदाऽणिम्नि स्थितिं गुहाम् ।
श्रीगङ्गे भैरवीं दूरीकुरु कल्याणि यातनाम् ॥ ७ ॥



विद्वानोंद्वारा आराध्य, अणिमा ऐश्वर्यमें स्थित गुहाको मैं नमस्कार करता हूँ। हे कल्याणरुपिणी गङ्गे! आप मेरी भैरवी यातनाको दूर कर दें ॥ ७ ॥


भवानि रक्षान्नपूर्णे सद्वर्णितगुणेऽम्बिके ।
देवर्षिवन्द्याम्बुमणिकर्णिकां मोक्षदां भजे ॥ ८ ॥




हे अन्नपूर्णे, हे अम्बिके, हे सत्पुरुषोंके द्वारा वर्णित गुणोंवाली भवानि! आप हमारी रक्षा कीजिये। देवताओं और ऋषियोंद्वारा वन्द्य तथा समस्त संसारको मोक्ष प्रदान करनेवाली जलमयी मणिकर्णिकाका मैं सेवन करता हूँ ॥ ८  ॥

 

॥ इति श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥



॥ इस प्रकार श्रीकाशीविश्वेश्वरादि स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥





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